"अग्रणीय माटीर मां" उमड़ी लोगों की भीड़!

जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र के जामुड़िया से हरिपुर को जानें वाले मुख्य सड़क वार्ड संख्या सात स्थित दामोदरपुर के कटलतला में अग्रिम संघ क्लब की ओर से 60 वर्ष पुर्ण होने के उपलक्ष्य में "अग्रणीय माटीर मां" थीम पर आधारित एक भव्य पंडाल का निर्माण किया गया।

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Sneha Singh
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टोनी आलम, एएनएम न्यूज: आज के समय में विलुप्त होते जा रहे कटपुतली एवं मिट्टि के बर्तन थीम पर कालीपुजा (Kalipuja) के उपलक्ष्य में जामुड़िया (jamuria) में बने पंडाल को देखने के लिए उमड़ी लोगों की भीड़। जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र के जामुड़िया से हरिपुर को जानें वाले मुख्य सड़क वार्ड संख्या सात स्थित दामोदरपुर के कटलतला में अग्रिम संघ क्लब की ओर से 60 वर्ष पुर्ण होने के उपलक्ष्य में "अग्रणीय माटीर मां" थीम पर आधारित एक भव्य पंडाल (grand pandal) का निर्माण किया गया। जिसमें आज के समय में काठ से बनाए गए कटपुतली एवं मिट्टी के बने सैकडों वर्तन से इस पंडाल को सजाया गया है। फ़िलहाल यह लोगों का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। जब इसके बारे पुछे जाने पर इस कमिटी के एक सदस्य तापस कर्मकार ने कहा कि सालो पुर्व बच्चों को मनोरंजन के लिए काठ के द्वारा विभिन्न-विभिन्न प्रकार के कटपुतली (puppet) का निर्माण किया जाता था जिसे बच्चे खेला करते थे और मिट्टी से कइ तरह के खिलौने के साथ इससे वर्तन का निर्माण हुआ करता था जिन्हें लोग अपने घरों में इस्तेमाल किया करते थे लेकिन आज के समय में यह धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा हैं। 

इन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए इस पंडाल के माध्यम से दर्शाया गया है इसके अलावा यहां चार दिनों तक स्थानीय बच्चों के द्वारा संस्कृत कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है इस मौके पर इस कमिटी के अध्यक्ष सुभाष बाउरी, सचिव सुमित बाउरी, कोषाध्यक्ष राज्य बाध्यकर उपस्थित थे। इस बारे में इस पूजा के आयोजन से जुड़े तपस्या कर्मकार ने कहा कि उनके इस पूजा का थीम इस बार जो पारंपरिक खिलौने होते हैं जिन्हें लकड़ी या मिट्टी से बनाए जाते थे उन पर बनाया गया है उन्होंने बताया कि लकड़ी और मिट्टी के बने खिलौने अब लुप्त होते जा रहे हैं आज की पीढ़ी को उन पुराने खिलौने तथा पुरानी परंपराओं के बारे में जानकारी देने के लिए इस थीम को चुना गया है। इसके साथ यहां पर स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural programme) किए जाते हैं उन्होंने बताया कि यह पूजा पूरी तरह से स्थानीय निवासियों पर ही आधारित है उन्हीं की भागीदारी से पूजा का आयोजन होता है।