टोनी आलम, एएनएम न्यूज़: जामुड़िया के इकडा गांव में ब्राह्मण परिवार की ओर से अनोखे तरीके से दुर्गापूजा का आयोजन किया जाता है जहां चकाचौंध की दुनिया से इतर कपड़े के पाट की पूजा होती है। इकडा गांव के चटर्जी परिवार की ओर से काफी धूमधाम के साथ दुर्गापूजा का आयोजन किया जाता है। लगभग 360 वर्ष पुराना इकडा ग्राम स्तिथ विंधवाशनी मंदिर में मां दुर्गा की पारंपरिक मिट्टी की प्रतिमा के स्थान पर सफेद कपड़े की पाट पर चित्र बनाकर पूजा अर्चना की जाती है। यह पूजा भले ही पाट पर तस्वीर बनाकर होती हो लेकिन बाकी सब पूजा की विधियां दुर्गापूजा की तरह निभाई जाती है। अनोखे तौर तरीके से होने वाली इस पूजा को देखने के लिए आस-पास के लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। सफेद कपड़े पर चित्र बनाने का काम वर्तमान समय में ईस्ट केंदा कॉलोनी निवासी ईसीएल कर्मी आलोक चक्रवर्ती द्वारा किया जा रहा है।
चित्रकार आलोक चक्रवर्ती ने कहा की अष्टधातु से बने मां दुर्गा और भगवान गणेश की मूर्ति इकडा गांव के चटर्जी परिवार के पूर्वज वामाचरण चटर्जी को विंधयाचल के विध्न पर्वत से आए साधु ने दी थी। उस समय साधु ने मूर्ति देते समय कहा था की वे इसे विंध्याचल के विध्न पर्वत से लाए है अतः इसकी नियमित पूजा की जानी चाहिए। साधु ने वामाचरण चटर्जी को सलाह दी थी की यदि कभी दुर्गापूजा करनी हो तो कपड़े की पाट पर चित्र बना दुर्गापूजा करना। वही तभी से इकडा गांव के चटर्जी परिवार की ओर से कपड़े पर माता की आकृति बनाकर दुर्गापूजा की शुरूवात की गई। प्रथम वर्ष मां दुर्गा की फोटो स्थापित कर पूजा की गई थी। इसके पश्चात पाट पूजा आरंभ की गई। पाट पूजा के लिए कपड़े की पाट पर चित्र बनाने का काम पहले जामुड़िया के बिजपुर गांव के सूत्रधर परिवार के लोग करते थे। इसके बाद लगभग 40 वर्षो तक दुर्गापुर के सुकुमार बनर्जी द्वारा पाट पर चित्र बनाने का काम किया गया। वही अभी लगभग 40 वर्षी से अधिक समय से पाट पर चित्र बनाने का काम ईस्ट केंदा निवासी ईसीएल कर्मी आलोक चक्रवर्ती द्वारा किया जाता है। दुर्गापूजा के दौरान प्रत्येक वर्ष षष्टी के दिन पुराने पाट को खोल दिया जाता है तथा नया पाट स्थापित किया जाता है। वही विजय दशमी के दिन पुराने पाट को विसर्जित कर दिया जाता है जबकि यहां स्थापित पाट को एक वर्ष तक रखा जाता है।