अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर भाषा शहीद स्मरण का आयोजन

इस संदर्भ में कार्यक्रम का आयोजन से जुड़े अरुप पाल ने बताया कि आज मातृभाषा दिवस के मौके पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि आज प्रोफेसर अरुणाभ दासगुप्ता यहां मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हैं।

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Sneha Singh
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टोनी आलम, एएनएम न्यूज़: अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बुधवार की शाम चांदा नजरूल मंच में भाषा शहीद स्मरण का आयोजन किया गया। इस दिन पश्चिम बंगाल गणतांत्रिक लेखक शिल्पी संघ जामुड़िया तथा महाकुमार कलाम जामुड़िया द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके आयोजन में गणनाट्य जामुड़िया एवं चांदा नजरूल मंच द्वारा सहयोग किया गया। चितरंजन कॉलेज के प्रोफेसर अरुणाबो दासगुप्ता, महाकुमार कलाम के सचिव तापस कवि, नजरूल मंच के सदस्य शांतिगोपाल साधु मुकुल, साधु अरूप पाल, गणोनाट्य संघ के सौरभ चक्रवर्ती, वासुदेव चटर्जी और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस दौरान सभी अतिथियों ने 21 फरवरी की याद में शहीद वेदी पर पुष्पांजलि अर्पित किया। छोटे बच्चों द्वारा संगीत, कविता और नृत्य प्रस्तुत कर इस दिन को याद किया गया। 

इस संदर्भ में कार्यक्रम का आयोजन से जुड़े अरुप पाल ने बताया कि आज मातृभाषा दिवस के मौके पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि आज प्रोफेसर अरुणाभ दासगुप्ता यहां मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हैं। वह आज के दिन के महत्व को लेकर अपने विचार को व्यक्त करेंगे। इसके साथ यहां पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। वहीं प्रोफेसर अरुणाभ दासगुप्ता ने अपने वक्तव्य में कहां कि यह जानने की आवश्यकता है कि आज मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है? और किस वजह से भाषा को लेकर एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 

जब भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ तब ईस्ट पाकिस्तान जो कि अभी बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है वह पाकिस्तान का उपनिवेश बन गया वहां पर वर्तमान पाकिस्तान के शासको द्वारा हर क्षेत्र में पूर्व पाकिस्तान या आज के बांग्लादेश के लोगों को दबाया जाता था। भाषा को लेकर भी ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को वंचित किया जाता था आज के पाकिस्तान के शासको में ईस्ट पाकिस्तान के लोगों की भाषा को कुचलने की कोशिश की। जिस वजह से एक आंदोलन खड़ा हुआ है। जिसमें 25 से ज्यादा लोग शहीद हुए, हजारों की संख्या में लोग घायल हुए और तब कहीं जाकर ईस्ट पाकिस्तान की भाषा यानी बांग्ला को मान्यता मिली और आज के दिन को पूरे विश्व में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।