यह कोई रंग नहीं, आम की कली है

लेकिन यह आश्चर्य की बात होनी चाहिए क्योंकि प्रकृति के विभिन्न मनमर्जी ने लंबे समय तक आषाढ़ महीने में पके आमों को देखा है, और अभी भी आम के पेड़ पर फिर से कलियाँ देख रहे हैं। हर कोई प्रकृति से हार जाता है।

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Ankita Kumari Jaiswara
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टोनी आलम, एएनएम न्यूज़: सभी जानते हैं कि हर साल बंगाली कैलेंडर में माघ-फाल्गुन महीना आता है, यानी आम के पेड़ों पर पीला रंग चढ़ जाता है। हाँ, यह सही है, लेकिन यह कोई रंग नहीं है, यह आम की कली है। आम वैशाख के महीने में तो बेर फागुन में पकते हैं। हालांकि इस समय आम के पेड़ों पर बारह महीने बौर आ रहे हैं। उस बौर से धीरे-धीरे यानी दो से तीन महीने बाद पेड़ पर आम लगते हैं और वो आम पहले महीने के मध्य में पक जाते हैं। कुदरत का ये नजारा लोग काफी देखा जाता हैं। लेकिन अब इलाके के अलग-अलग आम के पेड़ों पर एक अलग ही तस्वीर देखने को मिली। उससे सभी स्तब्ध रह गये। कई लोगों का कहना है कि अभी बाजार में किलो-किलो साइज के बड़े-बड़े आम बिक रहे हैं, यह आम पकने का समय है और इस समय आम के पेड़ों पर बौर आने से आम लोग हैरान हैं। इसके अलावा, कई अन्य लोगों का कहना है कि जब आम का मौसम होता है, तो पेड़ पर सही समय पर कोंपलें आती हैं और आम पककर बाजार में बिक जाते हैं। और कुछ आम के पेड़ साल में दो बार आम पैदा करते हैं, तो हो सकता है कि पेड़ पर कोंपले आ गए हों। 

लेकिन यह आश्चर्य की बात होनी चाहिए क्योंकि प्रकृति के विभिन्न मनमर्जी ने लंबे समय तक आषाढ़ महीने में पके आमों को देखा है, और अभी भी आम के पेड़ पर फिर से कलियाँ देख रहे हैं। हर कोई प्रकृति से हार जाता है।