स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: राजनीतिक विश्लेषक और सियासी जानकार खड़गे की भविष्य की योजनाओं को लेकर अलग अलग कारण बताते हैं। सियासी जानकार डी. उमापति ने बीबीसी हिंदी को बताया, "इसमें कोई शक नहीं कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। लेकिन अब कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) के तौर पर वो मुख्यमंत्री पद से ऊपर उठ चुके है। "वो उससे नीचे नहीं उतरना चाहेंगे। उनका आत्मसम्मान इसकी इजाज़त नहीं देगा। एक वक़्त वो था जब खड़गे को ग़ुलाम नबी आज़ाद और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था। आज बहुत से नेता उनसे मिलने का इंतज़ार करते रहते हैं।
लेकिन, एक और कांग्रेस नेता, एक और पार्टी अध्यक्ष के राज्य का मुख्यमंत्री बनने के उदारहण की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। नीलम संजीव रेड्डी 1960 में पहली बार एकजुट आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद वो कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1962 तक इस पद पर रहे।
1962 में नीलम संजीव रेड्डी दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौटे और 1964 तक इस पद पर रहे। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ा और केंद्रीय मंत्री बन गए। इसके बाद वो लोकसभा के अध्यक्ष और फिर देश के राष्ट्रपति भी बने।
मैसूर यूनिवर्सिटी में कला विभाग के अध्यक्ष और राजनीति वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर मुज़फ़्फ़र असादी ने बीबीसी हिंदी से कहा कि, "आज के संदर्भ में देखें, तो अगर खड़गे दोबारा राज्य की राजनीति में लौटते हैं, तो इससे विपक्षी एकता को नुक़सान पहुंचेगा।
"वो अब राष्ट्रीय स्तर पर एक नेता और बीजेपी को जवाब दे सकने वाली आवाज़ के रूप में उभर रहे हैं. जैसे ही वो कर्नाटक की राजनीति में लौटने का फ़ैसला करते हैं, तो इससे एक ग़लत संदेश जाएगा।
"हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि आज राष्ट्रीय राजनीति में खड़गे इकलौते कद्दावर दलित नेता हैं, जिनके करिश्मे का इस्तेमाल दलित वोट हासिल करने के लिए किया जा सकता है। प्रोफ़ेसर असादी ने कहा कि एक और सवाल भी है: 'अगर खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ते हैं, तो फिर उनकी जगह कौन लेगा?'