क्या है 'एक राष्ट्र, एक चुनाव'? कब और कैसे होगा लागू ?

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार मौजूदा कार्यकाल में 'एक देश, एक चुनाव' लागू करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक विधि आयोग जल्द ही इस संबंध में सिफारिश करेगा।

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Jagganath Mondal
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एएनएम न्यूज़, ब्यूरो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार मौजूदा कार्यकाल में 'एक देश, एक चुनाव' लागू करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक विधि आयोग जल्द ही इस संबंध में सिफारिश करेगा। 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली एक समिति पहले ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी सिफारिशें सौंप चुकी है। पिछले महीने लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने भी 'एक देश, एक चुनाव' की बात कही थी। विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव की सिफारिश कर सकता है। 'एक देश, एक चुनाव' क्या है? यह कार्यान्वयन के लिए कब तैयार है?

'एक देश, एक चुनाव' भारत में सभी चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था से संबंधित एक प्रस्ताव है। नरेंद्र मोदी जब से गुजरात के मुख्यमंत्री बने हैं तभी से इस व्यवस्था के पक्षधर रहे हैं। 'एक देश, एक चुनाव' के तहत लोकसभा और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है।

संसदीय समिति में हुई चर्चा में अनुमान लगाया गया कि चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने में 4500 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करता है। यह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के घोषित और अघोषित चुनाव खर्च से अलग है। बीजेपी का तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने पर लागत कम होगी। चुनाव से पहले लागू होने वाली आचार संहिता सरकार को नीतिगत निर्णय लेने या बार-बार नई योजनाएं शुरू करने से नहीं रोकेगी।

एक औपचारिक मसौदा अभी पेश किया जाना बाकी है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, विधि आयोग 2029 से सरकार के तीनों स्तरों, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव की सिफारिश कर सकता है। विधि आयोग अनिश्चितकालीन बहुमत न होने पर संसद में अविश्वास प्रस्ताव या एकता सरकार के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है।

'एक देश, एक चुनाव' के समर्थकों का तर्क है कि इससे प्रभावी शासन व्यवस्था बनेगी। इससे जनता के पैसे की बर्बादी कम होगी और विकास कार्य सुचारू होंगे, जो अन्यथा आचार संहिता लागू होने पर रुक जाएंगे। कई विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। विपक्ष का तर्क था कि देशभर में अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान भी खत्म किया जाना चाहिए।