स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: पौराणिक कथा के अनुसार सावन में समुद्र मंथन हुआ था। सृष्टि की रक्षा हेतु मंथन से निकले विष को भगवान भोलेनाथ पी गए थे। उनका कंठ नीला पड़ गया था। इसी कारण उनका नीलकंठ नाम पड़ा। समस्त देवी-देवताओं ने शिव जी राहत पहुंचाने और विष के प्रभाव को कम करने भगवान शिव पर शीतल जल अर्पित किया। तभी से शिव जी को जल बहुत प्रिय हैं। सावन में भोलेभंडारी का जलाभिषेक करने से वे प्रसन्न होते हैं।
कहा तो ये भी जाता है की भगवान भोलेनाथ की अर्धांगिनी देवी सती ने शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। माता सती का दूसरा जन्म पार्वती के रूप में हुआ था। देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए सावन के माह में कठोर तप किया था। कहते हैं कि शिव जी ने इसी माह में देवी पार्वती से विवाह किया था। इसलिए भगवान भोलेनाथ को सावन का माह बहुत प्रिय हैं। माना जाता है कि इस माह में शिव जी अपने सुसराल आए थे। तब उनका अभिषेक कर स्वागत हुआ था।