भारतीय अनुवाद साहित्य अनुष्ठान देश के विभिन्न प्रांत के अनुवादकों को एकत्रित कर अनूदित साहित्य के व्यापक विस्तार की दिशा में निरंतर प्रयासरत है एवं समय समय पर अनुष्ठान
की ओर से अनूदित साहित्य पर आलोचना, अनुवादकों की कार्यानुभूति पर चर्चा तथा अनूदित काव्य का पाठ इत्यादि कार्यक्रम आयोजित भी करता है।
इसी क्रम में 24 जुलाई सायं 6 बजे अनुष्ठान ने ऑनलाइन के माध्यम से गूगल मीट पर बहुभाषी अनूदित काव्यपाठ एवं काव्य समीक्षा का एक कार्यक्रम संपादित किया ।
'भारतीय अनुवाद साहित्य' समूह के संस्थापक आद. श्री शरत चंद्र आचार्य ने सम्मानीय आनुवादकों का सादर स्वागत कर अभिनन्दन किया एवं कालांतर में यह अनुष्ठान भिन्न भिन्न प्रदेश में अनुवाद साहित्य का अपरिमित विस्तार हेतु यत्नशील रहेगा तथा सम्मलेन का आयोजन भी करेगा , यह आश्वासन भी दिया ।
आकाशवाणी की उपस्थपिका आद. सुश्री मिता पट्टनायक एवं युवा अनुवादिका आद. सुश्री जयश्री दोरा के संचालन में 20 से अधिक युवा रचनाकार तथा प्रतिष्ठित अनुवादकों के द्वारा अनूदित काव्य पाठ-कार्य संपन्न हुआ ।
विशेष रूप से अनुवाद कार्य हेतु केंद्रीय साहित्य अकादमी से पूर्व पुरस्कृत
आद. श्रद्धांजलि कानूनगो, राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त अनुवादक आद.डॉ हरेकृष्ण मेहेर तथा डॉ. भगवान त्रिपाठी,आद.मंजुला आस्थाना महांति, आद. डॉ. मंजू शर्मा महापात्र, आद. शैलवाला महापात्र, आद. निहारिका मल्लिक, आद. पारमिता षडंगी, आद. अनिमा दास, आद. नमिता पाईकराय, आद.उर्मिमाला आचार्य, आद. विद्युत् प्रभा गंतायत, आद. संगीता रथ, आद. चंद्रमा महापात्र, आद. बसीरन बीबी, आद. सनातन महाकुड़, आद. शुभलक्ष्मी सेनापति, आद. श्रीकांत पंडा तथा आद. जाह्नवी त्रिपाठी आदि प्रमुख रचनाकारों ने अपनी अनूदित काविताओं का पाठ किया।
इस काव्यपाठ कार्यक्रम में अलीगढ़ के प्राध्यापक(हिंदी विभाग) तथा लब्ध प्रतिष्ठित अनुवादक
आद. डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह जी ने समीक्षक के रूपमें
काव्य रचनाओं की समीक्षा तथा
साहित्य एवं संस्कृति के विकास की दिशा में अनुवादकों की महत्वपूर्ण भूमिका दर्शाकर कहा कि
साहित्य के इस प्रमुख विभाग की विस्तृति सफल अनुवाद कार्य द्वारा संभव हो पाएगी। आद. विजेंद्र जी ने अनुवादकों को प्रोत्साहित करते हुए यह भी कहा कि अनुवाद करते समय अनुवादक को अत्यंत सजगता एवं सतर्कता सहित ज्ञान, अनुभूति, सामर्थ्य तथा कलात्मक दक्षता से इस कार्य को प्रभावी करना होता है। इस मंतव्य के साथ सभा का समापन हुआ ।