स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: नागपंचमी के अवसर पर प्रयागराज में दारागंज के नागवासुकि मंदिर की महिमा विशेषरूप से बढ़ जाती है। कालसर्प के दोष से भी मुक्ति मिलती है। वैसे साल भर मंदिर में सन्नाटा रहता है, लेकिन सावन और नागपंचमी में देश के कई इलाकों से भक्तों का जमघट लगा रहता है। प्रयागराज में नागपंचमी का मेला विशेष माना जाता है। इसकी परंपरा महाराष्ट्र के पैष्ण तीर्थ से जुड़ती है, जो नासिक की तरह गोदावरी के तट पर स्थित है। अपने अनूठे वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध नागवासुकि मंदिर, विश्व का इकलौता मंदिर है, जिसमें नागवासुकि की आदमकद की प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व-द्वार की देहली पर शंख बजाते हुए दो कीचक बने हैं, जिनके बीच में लक्ष्मी के प्रतीक कमल दो हाथियों के साथ बने हैं। इसकी कलात्मकता सबसे अधिक आकर्षित करती है। नागवासुकि का विग्रह भी आकार-प्रकार में कम सुंदर नहीं है। देश में ऐसे मंदिर अपवाद रूप में ही मिलेंगे, जिसमें नाग देवता को ही केंद्र में प्रतिष्ठित किया गया हो। इस दृष्टि से नागवासुकि मंदिर असाधारण महत्ता रखता है। यह मंदिर कब बना और कितनी बार बना, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। कहा जाता है कि मराठा शासक श्रीधर भोंसले ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। वैसे ही प्रयागराज में नागवासुकि मंदिर गंगा के तट पर अलग स्थित दिखायी देता है।