एएनएम न्यूज़, ब्यूरो: दुर्गा पूजा में नवरात्रि के दौरान संधि पूजा का पौराणिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता दुर्गा का महिषासुर के साथ युद्ध चल रहा था, इस दौरान चंड मुंड नाम के दो राक्षसों ने धोखे से मां दुर्गा की पीठ पर वार कर दिया। जिससे मां आदिशक्ति अत्यंत क्रोधित हो गई व क्रोध से उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया। क्रोध के कारण मां ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिससे मां का अत्यंत भयंकर और विशाल स्वरूप प्रकट हुआ जिसे मां चामुंडा के रूप में सब जानते हैं। व चामुंडा रूप धारण करके मां ने चंड मुंड का वध किया। माना जाता है कि जिस दिन माता चामुंडा ने चंड मुंड का वध किया और उस दिन नवरात्र के अष्टमी तिथि के शाम का वक्त था व नवमी तिथि का प्रारंभ हो रहा था। इस वजह से ही मां के चामुंडा स्वरूप की पूजन का विधान किस दिन बना।
यह पूजा एक विशिष्ट समय पर की जाती है, अर्थात उस समय के दौरान जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि शुरू होती है। अष्टमी तिथि के दौरान अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के दौरान पहले 24 मिनट एक साथ संधिक्षण बनाते हैं, यानी ठीक वह समय जब देवी दुर्गा ने देवी चामुंडा का अवतार लिया और राक्षसों चंड और मुंड का सफाया कर दिया। संधि पूजा में कद्दू व ककड़ी की बलि देने का भी विधान है। बलि देने के बाद मां के मंत्रों का उच्चारण इस दिन किया जाता है।