स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म में व्रत का बहुत महत्व है और साल भर में कई व्रत रखे जाते हैं और सभी के अलग-अलग नियम होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर भी एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया है। आइये जानते हैं 19 दिसंबर को आने वाली सफला एकादशी के बारे मे।
सफला एकादशी व्रत कथा
एक बार महिष्मान नामक एक राजा चम्पावती नगरी में रहता था, वैसे तो उसके चार पुत्र थे परंतु उसका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक दुराचारी था। वह मद्रिपान, वैश्यागमन आदि पाप करता था, हमेशा ही ब्राह्मण, भगवान, संत, भक्त आदि का अपमान एवं उन्हें परेशान करता था। इन सब बातों का पता लगने पर राजा ने उसे अपनी संपत्ति एवं महल से बेदखल कर दिया, जिसके कारण उसने अपना पेट पालने के लिए चोरी करना शुरू कर दिया। दिन भर वह सोता और रात्रि में उसी नगर में चोरी करता और साथ ही साथ प्रजा को भी परेशान करता परंतु राजा का पुत्र होने के कारण कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता और समस्त नगर उससे डरने लगा.। इस सबके साथ-साथ उसने शिकार कर मांसाहार भी शुरू कर दिया। वन में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष था, जिसे लोग दैवीय वृक्ष मानकर उसकी पूजा किया करते थे, उसी वृक्ष के नीचे लुम्पक रहने लगा। कुछ दिनों बाद पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन उस पर वस्त्र ना होने के कारण वो वस्त्रहीन था और ठंडी की वजह से सारी रात सो ना सका और उसका शरीर भी ठण्ड की वजह से अकड गया।
अंजाने में किया सफला एकादशी व्रत
अगले दिन एकादशी की दोपहर सूरज की गर्मी के कारण उसका शरीर कुछ ठीक हुआ एवं उसकी मूर्छा दूर हुई और वह भूखा होने के कारण कुछ खाना ढूंढ़ने चल दिया। कमज़ोर होने के कारण वह शिकार नहीं कर सकता था, अतः उसने पेड़ों के नीचे पड़े फल लेकर वापस पीपल के नीचे आ गया परंतु तब तक अधेरा हो चुका था तो वह उन फलों को रखकर बोला, “हे नाथ! यह फल आपको निवेदित, अब इन्हें खुद ही खाओ।” उस रात भी उसे नींद नहीं आई और उसने अपने द्वारा किये गए सभी पापों के बारे में सोचा, जिससे उसे ग्लानि हुई और उसने भगवान से माफ़ी मांगी।