स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: अघोरी बाबा सुनते ही जेहन में जिन बाबाओं का रूप सामने आता है, वो राख से लिपटे होते हैं। अघोरियों के रहन-सहन और तरीके बिलकुल अलग हैं। अघोरी शिव और शव के उपासक होते है। अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं। शिव के पांच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है। शिव की उपासना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं। 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है। ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है। शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है और श्मशान साधना, जहां हवन किया जाता है। तोह आइये जानते है अघोरी क्यों बनाते हैं लाशों से शारीरिक संबंध।
शव के साथ शारीरिक सम्बन्ध: यह बहुत प्रचलित धारणा है कि अघोरी साधु शवों की साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं। यह बात खुद अघोरी भी मानते हैं। इसके पीछे का कारण वो यह बताते हैं कि शिव और शक्ति की उपासना करने का यह तरीका है। वे कहते हैं कि यह भक्ति का सबसे सरल उपाय है, अभागे में भी भगवान की भक्ति। वो मानते हैं कि अगर शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान भी मन ईश्वर भक्ति में लगा है तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा। अन्य साधुओं की तरह ये ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते। बल्कि शव पर राख से लिपटे मंत्रों और ढोल नगाड़ों के बीच शारीरिक सम्बंध बनाते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से अघोरियों की शक्ति बढ़ती है।