टोनी आलम , एएनएम न्यूज़: कल आधी रात से केंदा कोलियरी की बंद पड़ी दो नंबर पिट पर काला धुंआ देखा गया और रात से ही वह धुंआ भीषण आग में तब्दील हो गया जिससे इलाके में अफरा तफरी मच गई। 2017 में भी इसी तरह की आग और भूधसान के कारण पूरे गांव को आसपास के स्कूलों में आश्रय दिया गया था। फिर वे अपने-अपने घरों को आ गए थे। बार-बार आग और धसान से पूरे गांव के लोग दहशत में हैं। हालांकि केंदा ग्राम संरक्षण समिति बार-बार पुनर्वास की मांग कर चुकी है, लेकिन उनकी शिकायत है कि अभी तक पुनर्वास नहीं मिला है। इस संदर्भ मे एक स्थानीय निवासी ने कहा कि यहां हर साल इस तरह की घटनाएं हो रहीं हैं लेकिन ईसीएल की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने बताया कि 1994 मे लगी आग में 55 श्रमिको की मौत हो गयी थी तभी से ईसिएल की तरफ से सिर्फ आश्वासन दिया जाता रहा है और उनको हर साल धसान और जमीन के नीचे की आग के दहशत में जीना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि इससे पहले तीन तारीख को गांव के अंदर भु धसान हुआ था। तब भी ग्रामीणों ने ईसिएल प्रबंधन और स्थानीय पुलिस प्रशासन से इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए गुहार लगाई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला । इनका सवाल था कि क्या केंदा के लोगों को इस आग और धसान के साथ ही जीना होगा? उन्होंने बताया कि अबतक चार मवेशियों की आग में झुलसकर मौत हो गयी है । उन्होंने कहा कि वह भी जानते हैं कि पुनर्वास का काम इतनी जल्दी नहीं होगा लेकिन कम से कम तबतक उनको सुरक्षित रखने का प्रबंध तो किया जाए। वहीं एक अधिकारी ने बताया कि सरफेस लीकेज के कारण यह आग लगी है। करीब एक किलोमीटर रास्ते में लीकेज ढुंडना मुशकिल है लेकिन प्रबंधन की तरफ से हर संभव कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस आग से जितना खतरा गांव वालों को है उससे कहीं ज्यादा नुकसान ईसीएल को होगा । वहीं केंदा ग्राम रक्षा कमिटि के संजीव बैनर्जी ने कहा कि यह कोई नई घटना नहीं है। इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है। 2017 मे उस गांव के लोगों को पास के स्कुलो में आश्रय लेना पड़ा था। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी अपील की कि इस क्षेत्र के लोगों को जल्द से जल्द पुनर्वास दिया जाए क्योंकि अगर शह गांव जमीदोज हो गया तो करीब डेढ़ सौ परिवार बेघर हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि इसी गांव पर केंदा ग्राम पंचायत का अस्तित्व निर्भर है।