एएनएम न्यूज, ब्यूरो: भारत की आज़ादी के लिए कई क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान दे दी। ब्रिटिश सरकार ने पिछले 200 सालों में भारतीयों पर अनगिनत अत्याचार किए।
अंग्रेजों ने भारतीयों पर अत्याचार करने के लिए हर संभव कोशिश की। यह भी ज्ञात है कि ज़्यादातर कैदियों ने यातनाएँ न सह पाने के कारण आत्महत्या कर ली। यह भी ज्ञात है कि कई बार फांसी या अन्य कारणों से मरने वाले कैदियों के शव समुद्र में बहा दिए जाते थे।
अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को अंडमान की सेलुलर जेलों में कैद कर रखा था। सिर्फ़ कैदियों को ही नहीं, बल्कि उन्हें अकल्पनीय शारीरिक यातनाएँ दी जाती थीं। कैदियों के पैरों को जंजीरों में जकड़ा जाता था। इसके अलावा, शरीर पर सिगरेट के बट भी लगाए जाते थे। उन्हें कोड़े मारे जाते थे। यातनाएँ देने के बाद उनकी मौत हो जाती थी।
इतिहास बताता है कि इस जेल में कैदियों को दिए जाने वाले खाने का स्तर भी बहुत खराब था। बीमार होने पर भी पर्याप्त दवा नहीं मिलती थी। इसके विरोध में कैदी जेल में भूख हड़ताल पर बैठ गए थे।
इस सेलुलर जेल में क्रांतिकारी सत्येंद्र नारायण मजूमदार, फजल-ए-हक खैराबादी, योगेंद्र शुक्ला, बटुकेश्वर दत्त, विनायक सावरकर, बाबाराव सावरकर, सचिंद्रनाथ सान्याल, इंदुभूषण रॉय, उल्लासकर दत्त, हरेकृष्ण कोनार, भाई परमानंद, सोहन सिंह, सुबोध रॉय कैद किए गए थे। त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती, बरिंद्र कुमार घोष, शेर अली अफरीदी और अन्य।
इसके अलावा, महावीर सिंह, भगत सिंह लाहौर षडयंत्र मामले में इस जेल में कैद थे। मोहन किशोर नामदास, मोहित मैत्रा को आर्म्स एक्ट मामले में दोषी ठहराया गया। उन्हें जबरन खिलाने के कारण मृत्यु हो गई।
सेलुलर जेल में कोशिकाएं एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग थीं। यह ज्ञात है कि कोशिकाओं का निर्माण इस तरह से किया गया था कि कोई भी कैदी दूसरे का चेहरा नहीं देख सकता था। परिणामस्वरूप उनके बीच संचार का कोई तरीका नहीं था। इस तरह ब्रिटिश सरकार ने 'एकांत कारावास' की व्यवस्था की। एक शब्द में कहें तो कालापानी की इस जेल में ब्रिटिश सरकार की पूरी सुरक्षा थी।
जेल की संरचना किसी सितारे के चिह्न की तरह थी। जेल की इमारत में सात पंख थे। बीच में एक मीनार थी। जहाँ से पहरेदार निगरानी करते थे। साइकिल के पहिये की तीलियों की तरह बीच से शाखाएँ फैली हुई थीं। जेल में कुल 696 कोठरियाँ थीं। 14.8 x 8.9 फ़ीट की कोठरियों में सिर्फ़ एक गिलहरी रहती थी। वह भी ज़मीन से 9.8 फ़ीट की ऊँचाई पर।
इतिहासकारों ने कहा कि इस जेल में कम से कम 80,000 क्रांतिकारी कैदी थे। इतिहास से यह भी पता चलता है कि क्रांतिकारी इंदुभूषण रॉय ने फटे हुए फ़तवे को गले में लपेटकर आत्महत्या कर ली थी। क्रांतिकारी चीयरलीडर दत्त ने 14 साल सेलुलर जेल में बिताए। सताए गए क्रांतिकारी मलेरिया से पीड़ित हो गए। उन्हें अंततः जेल के पागलखाने में रखा गया। अंततः 1920 में रिहा होने के बाद वे कलकत्ता लौट आए।