स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सह सीनियर एडवोकेट डॉ. आदिश सी अग्रवाल ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से पश्चिम बंगाल के तीन ज्यूडिशियल ऑफिसर द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का अनुरोध किया है।
डायमंड हार्बर, दक्षिण 24 परगना जिले के 'जज अबासन' में रहने वाले न्यायिक अधिकारियों ने 9 सितंबर 2024 की सुबह के समय हुई एक भयावह घटना का विवरण दिया है। जिसमें डायमंड हार्बर जिले के एक पुलिस अधिकारी ने न्यायिक क्वार्टर के गार्डों को निर्देश दिया कि वे दो व्यक्तियों को देर रात बिजली आपूर्ति को काटने के लिए परिसर में प्रवेश करने दें। आशंका जताई जा रही है कि न्यायिक प्रक्रिया को डराने या उसमें हस्तक्षेप करने के प्रयास के रूप में किया जा रहा है।
डॉ. अग्रवाल ने सीजेआई से इस घटना का स्वतः संज्ञान लेने का अनुरोध किया है, जिसमें न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक प्रणाली की अखंडता के लिए संभावित खतरे पर जोर दिया गया है। उन्होंने सीजेआई के हस्तक्षेप से संबंधित पुलिस अधिकारी की कार्रवाई की गहन जांच की समीक्षा करने की अपील की है।
जिला न्यायाधीश को दी गई अपनी आधिकारिक शिकायत में, ज्यूडिशियल ऑफिसर ने आशंका जताई कि यह घटना सीधे तौर पर कुछ POCSO अधिनियम मामलों में उनके द्वारा पारित किए गए प्रतिकूल आदेशों से जुड़ी हुई थी, जिसने कुछ व्यक्तियों को उनके खिलाफ प्रतिशोध लेने के लिए प्रेरित किया होगा। उन्होंने इस घटना को भविष्य के मामलों में अनुकूल निर्णय देने के लिए उन्हें डराने-धमकाने का प्रयास बताया। अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे अब अपने आधिकारिक क्वार्टर में सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं।
इस बाबत केंद्रीय शिक्षा और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने भी 11 सितंबर 2024 को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे पश्चिम बंगाल में कानून और व्यवस्था की विफलता बताया और सरकार से न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करने और इसमें शामिल लोगों, जिनमें पुलिस अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं, के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आह्वान किया।
एससीबीए के तत्कालीन अध्यक्ष की सीजेआई से की गई अपील न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरे की गंभीरता को रेखांकित करती है। उन्होंने कहा कि इस घटना को एक अलग घटना के रूप में नहीं बल्कि न्यायपालिका के अधिकार के लिए एक सीधी चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए।
डॉ. अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि अगर तेजी से कार्रवाई नहीं की गई तो एक खतरनाक मिसाल कायम हो सकती है, जहां पश्चिम बंगाल में न्यायिक अधिकारी बिना किसी डर के काम करने में असमर्थ महसूस कर सकते हैं।