स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काला पानी की सजा

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स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काला पानी की सजा

स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षड्यंत्र कांड के आरोप में सावरकार को 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा सुनाते हुए अंडमान द्वीप के सेल्युलर जेल भेज दिया गया। इस जेल में कैदियों को कोल्हू में बैल की तरह जोत दिया जाता था। सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।

उन्होंने अपने कारावास के दिनों में 'द ट्रांसपोर्टेशन ऑफ़ माई लाइफ' नामक पुस्तक लिखी। उनकी दो पुस्तकों को मुद्रित और प्रकाशित होने के पूर्व ही अंग्रेजों ने ज़ब्त कर लिया। भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत रहने के कारण उन्हें एक भारतीय विश्वविद्यालय की अपनी उपाधि से वंचित होना पड़ा। यही नहीं, राजनिष्ठा की शपथ लेने से इंकार कर देने के कारण उन्हें बैरिस्टर की उपाधि प्रदान नहीं की गई। उन्होंने यह घोषणा की कि संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता ही भारत का ध्येय है। आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई। बाद में यह 'अभिनव भारत सोसाइटी' नामक संगठन में बदल गया।