स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: रवींद्र नाथ टैगोर के बाद फ़िराक ही ऐसे हिन्दुस्तानी शायर थे, जिन्हें दुनिया ने दिल से लगाया। फ़िराक को यह मुकाम यूं ही नहीं मिला। उन्होंने अपनी कहानी को कुछ यूं ही बयां किया है कि 'मैंने इस आवाज को मर मर के पाला है फ़िराक। आज जिसकी निर्मली हे शम्मे मेहराब हयात।' फ़िराक साहब को 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और 1967 में पद्म भूषण से भी नवाजा गया था। इसके आलावा 1970 में फ़िराक साहब को दो बड़े एजाजात और इनामात से भी नवाजा गया था, मगर उन्होंने फ़िराकपरस्ती और फ़िराक फहमी को ही अपने लिए सबसे बड़ा इनामी एजाज समझा। 28 अगस्त 1896 को गोला तहसील के बनवारपार में पैदा हुए रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी देश सेवा और साहित्य साधना करते हुए 3 मार्च 1982 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे।