एएनएम न्यूज़, ब्यूरो: होलिका महर्षि कश्यप और दिति की पुत्री थी जिनका जन्म जनपद-कासगंज के सोरों शूकक्षेत्र नाम की जगह में हुआ था।होलिका हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नाम के योद्धा की बहन और हिरण्यकशिपु के पुत्रों प्रह्लाद, अनुह्लाद, सह्लाद और ह्लाद की बुआ भी थीं। होलिका को अपने भाईयों पर घमंड था कि उन्हें कोई हरा नहीं सकता। इसके साथ ही होलिका को वरदान भी प्राप्त था कि वो जलेगी नहीं। दिति के बड़े बेटे हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी से वरदान पाया था कि उसे ना पशु द्वारा मारा जाएगा, ना दिन में ना रात में, ना घर के अंदर और ना घर के बाहर मारा जाएगा। इसके बाद उसे प्राणों का डर नहीं रहता था और वो अपने राज्य की प्रजा से कहता था कि वो उनका भगवान है। सभी लोग डरकर उसकी पूजा करते थे लेकिन हिरण्यकशिपु के बेटे प्रह्लाद के मन में विष्णु जी की भक्ति आती है और वो हर समय हरि हरि का भजन करता रहता था। बीटा को मरवाने के लिए हिरण्यकशिपु ने हर जतन किए लेकिन भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचा लेते थे।
जब उसे कोई रास्ता नहीं सूझा तब उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में लेकर प्रज्जवलित अग्नि में बैठ जाए। होलिका ने ऐसा ही किया लेकिन श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई। इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और लोग इस दिन को बहुत ही खुशियों के साथ और धूमधाम से मनाते हैं।