स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: पौराणिक कथा के अनुसार, चित्ररथ नाम के वन में देवराज इंद्र देवताओं और गंधर्व कन्याओं के साथ घूमने गए थे । वन में भगवान विष्णु के उपासक मेधावी नाम के ऋषि तपस्या कर रहे थे तब कामदेव ने उस ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजुघोषा नाम की अप्सरा को भेजा । मेधावी ऋषि युवा थे, वे उस अप्सरा के नृत्य, संगीत और रूप पर मोहित होकर दोनों रति क्रीड़ा में लीन हुए। ऐसे उनके जीवन के 57 साल बीत गए। एक दिन मंजुघोषा ने मेधावी ऋषि से वापस देव लोक जाने की अनुमति मांगी तो ऋषि को ध्यान आया कि वो वन में तपस्या करने गए थे। इस अप्सरा के कारण वे अपने रास्ते से भटक गए थे। क्रोधित ऋषि ने अप्सरा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। उस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछने पर ऋषि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत विधिवत करने को कहा। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस व्रत को रखता है और विधि-विधान के साथ पूजा करने पर उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे उस पाप का भोग नहीं करना पड़ता है।