टोनी आलम, एएनएम न्यूज़: संथाली विभाग में शिक्षा का अधिकार पाने के लिए और अपनी मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार मांगने के लिए संथाल समुदाय के लोग दिशम आदिवासी गांवता की शाखा फाईट फार मदर टंग के बैनर तले सड़कों पर उतरे और उन्होंने पारंपरिक धमसा, मादल और धनुष तीर-कमान लेकर रानीगंज के पंजाबी मोड़ के ओवर ब्रिज से अपना विरोध प्रदर्शन शुरू किया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं तब तक वे टीडीबी कॉलेज में अपनी स्थिति को लेकर प्रदर्शन करते रहेंगे। इस विरोध कार्यक्रम में विभिन्न जिलों से आदिवासी संगठनों के कई स्थानीय नेता आये थे। उनका दावा है कि टीडीबी कॉलेजों के पास आदिवासियों को व्यवस्थित रूप से वंचित करने के लिए शैक्षिक बुनियादी ढांचा होने के बावजूद इस शिक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं किया जा रहा है। और उन्होंने दावा किया कि ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि प्रबंधन समिति ने सही निर्णय नहीं लिया।
इस विशाल विरोध मार्च को सही ढंग से संपन्न कराने के लिए भारी संख्या में पुलिस प्रशासन और यहां तक कि पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारी भी मौजूद रहे। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए लाठीधारी पुलिस के साथ-साथ महिला पुलिस और यहां तक कि आंसू गैस के गोले भी रखे गए थे। इस बीच किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए रानीगंज के त्रिवेणी देवी वालोटिया कॉलेज परिसर में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात की गई। वहीं प्रदर्शनकारियों ने मातृभाषा में पढ़ाई की मांग करते हुए कॉलेज में साओताली भाषा शुरू करने की मांग करते हुए कॉलेज में बंद पड़ी शिक्षा व्यवस्था को अविलंब सुचारू रूप से शुरू करने की मांग करते हुए नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस विरोध मार्च में कई युवा लड़कियों और छात्रों ने नारे लगाए। उन्होंने धमसा मादल की थाप पर नारे लगाकर अपनी मांगें उठाईं। यह विशाल विरोध मार्च तीर-धनुष उठाए हुए चलता रहा। कॉलेज के गेट पर आकर इन्होंने मातृभाषा में शिक्षा की मांग को लेकर नारेबाजी की।
इस बारे में संगठन के राज्य पर्यवेक्षक भुवन मांडी ने बताया कि वे आदिवासी हैं शायद इसीलिए उनकी मांग नहीं मानी जा रही है ताकि आदिवासी समाज के लोग पढ़ लिख ना सके और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न हो सके। राज्य के विभिन्न कॉलेज विश्वविद्यालय में अलचीकी लिपि में पढ़ाई लिखाई चालू कर दी गई है लेकिन यहां पर यह मांग नहीं मानी जा रही है जबकि रानीगंज आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं जिनको अपनी भाषा में पढ़ाई लिखाई करने के लिए या तो आसनसोल जाना पड़ता है या पुरुलिया जाना पड़ता है। उनकी मांग है कि जब तक आदिवासी समाज की मांग नहीं मानी जाएगी तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।