गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान ? क्या कहता है शास्त्र ? (Video)
पिंडदान का मुहूर्त निकल जाने पर मेरी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी, इसलिए तुम शीघ्र ही मेरा पिंडदान कर दो।" ऐसे में माता सीता ने तुरंत नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाया और फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए पिंडदान किया।
रिया, एएनएम न्यूज़: पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण जी और देवी सीता जब वनवास के लिए गए थे, तब राम जी के वियोग में राजा दशरथ का देहांत हो गया। गरुड़ पुराण के अनुसार प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण जी और देवी सीता को जब इस बात की सूचना मिली, तो पितृपक्ष में राजा दशरथ का श्राद्ध करने के लिए तीनों बिहार के गया में स्थित फाल्गु नदी पर पहुंचे।
फाल्गु नदी के तट पर पहुंचकर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने नगर में चले गए। जबकि माता सीता उनके वापस लौटने की प्रतीक्षा करने लगीं। बहुत समय बीत जाने पर भी प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी नहीं लौटे। अचानक राजा दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और सीता जी से पिंडदान की मांग की। माता सीता ने कहा कि उनके पुत्र के होते हुए वे पुत्रवधु होकर कैसे पिंडदान कर सकती है? माता सीता के प्रश्न का उत्तर देते हुए राजा दशरथ ने कहा-"हे सीते! मैं यमलोक से आया हूं। वहां के बनाए नियमों के अनुसार पिंडदान पुत्री और पुत्रवधु भी कर सकती है क्योंकि वे भी कुल का अंश हैं। पिंडदान का मुहूर्त निकल जाने पर मेरी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी, इसलिए तुम शीघ्र ही मेरा पिंडदान कर दो।" ऐसे में माता सीता ने तुरंत नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाया और फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए पिंडदान किया। माता सीता के बनाए बालू के पिंडदान से राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई। तभी से मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।